hindi diwas par kavita
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दीचलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना।भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों कीस्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना।
गूंजी हिन्दी विश्व में,स्वप्न हुआ साकार;राष्ट्र संघ के मंच से,हिन्दी का जयकार;हिन्दी का जयकार,हिन्दी हिन्दी में बोला;देख स्वभाषा-प्रेम,विश्व अचरज से डोला;कह कैदी कविराय,मेम की माया टूटी;भारत माता धन्य,स्नेह की सरिता फूटी!
“निज भाषा उन्नति लहै सब उन्नति को मूल।बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल॥”
एक डोर में सबको जो है बांधतीवह हिंदी हैहर भाषा को सगी बहन जो मानतीवह हिंदी है।भरी-पूरी हों सभी बोलियांयही कामना हिंदी है,गहरी हो पहचान आपसीयही साधना हिंदी है,सौत विदेशी रहे न रानीयही भावना हिंदी है,तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशीसब रंगों को अपनातीजैसे आप बोलना चाहेंवही मधुर, वह मन भाती
हिंदी हमारी आन है हिंदी हमारी शान हैहिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।हिंदी हमारी वर्तनी हिंदी हमारा व्याकरणहिंदी हमारी संस्कृति हिंदी हमारा आचरणहिंदी हमारी वेदना हिंदी हमारा गान है।हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।हिंदी हमारी आत्मा है भावना का साज़ है।हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है।
पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा।हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती।कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती।आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नाम हीइक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।
मैं भारत माँ के मस्तक पर सबसे चमकीली बिंदी हूँ |मैं सब की जानी पहचानी भारत की भाषा हिंदी हूँ ||मेरी बोली में मीरा ने मनमोहक काव्य सुनाया है |कवि सूरदास के गीतों में मैंने कम मान न पाया है ||तुलसीकृत रामचरितमानस मेरे मुख में चरितार्थ हुई |विद्वानों संतों की वाणी गुंजित हुई, साकार हुई ||भारत की जितनी भाषाएँ सब मेरी सखी सहेली हैं |हम आपस में क्यों टकराए हम बहने भोली भाली हैं ||सब भाषाओं के शब्दों को मैंने गले लगाया है |इसलिए भारत के जन-जन ने मुझे अपनाया है ||मैंने अनगिनत फिल्मों में खूब धूम मचाई है |इसलिए विदेशियों ने ने भी अपनी प्रीति दिखाई है ||सीधा – साधा रूप हीं मेरा सबके मन को भाता है |भारत के जनमानस से मेरा सदियों पुराना नाता है ||मैं भारत माँ के मस्तक पर सबसे चमकीली बिंदी हूँ |मैं सब की जानी पहचानी भारत की भाषा हिंदी हूँ ||
हिन्दी दिवस पर कविता { 2.}
जन – जन की भाषा है हिंदी,
भारत की आशा है हिंदी |
जिसमें पूरे देश को जोड़ रखा,
वह मजबूत धागा है हिंदी |
हिंदुस्तान की गौरव गाथा है हिंदी,
एकता की अनुपम परंपरा है हिंदी |
जिसके बिना हिन्द थम जाए,
ऐसी जीवन रेखा है हिंदी |
जिसने काल को जीत लिया है,
ऐसी कालजयी भाषा है हिंदी |
सरल शब्दों में कहा जाए तो,
जीवन की परिभाषा है हिंदी |
बच्चों का पहला शब्द है हिंदी,
माँ के प्रेम की छाया है हिंदी |
पिता का प्यार है हिंदी,
ममता का आँचल है हिंदी |
हिंदुस्तान की आवाज है हिंदी,
हर दिल की धड़कन है हिंदी |
शहीदों की भूमि है हिंदी,
हिंदुस्तान की ताकत है हिंदी |
ज्ञान का सागर है हिंदी,
हिंदुस्तान का सम्मान है हिंदी |
हिंदुस्तान की संस्कृति का प्रतिबिंब है हिंदी,
हर भारतीय नागरिक की पहचान है हिंदी |
हिन्दी दिवस पर कविता { 3.}
भाषण देते हैं हमारे नेता महान,
क्यों बाद में समझते है अपना,
हिन्दी बोलने में अपमान |
क्यों समझते हैं सब,
अंग्रेजी बोलने में खुद को महान |
भूल गए हम क्यों इसी अंग्रेजी ने,
बनाया था हमें वर्षों पहले गुलाम |
आज उन्हीं की भाषा को क्यों करते है,
हम शत् – शत् प्रणाम |
अरे ओ खोए हुए भारतीय इंसान,
अब तो जगाओ अपना सोया हुआ स्वाभिमान |
उठे खड़े हो करें मिलकर प्रयास हम,
दिलाए अपनी मातृभाषा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान हम |
हिन्दी दिवस पर कविता { 4.}
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
राष्ट्रभाषा हूँ मैं अभिलाषा हूँ मैं,
एक विद्या का घर पाठशाला हूँ मैं |
मेरा घर एक मंदिर बचा लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
देख इस भीड़ में कहां खो गई,
ऐसा लगता है अब नींद से सो गई |
प्यार की एक थपक से जगा लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
मैं हीं गद्य भी बनी और पद्य भी बनी,
दोहे, किससे बनी और छंद भी बनी |
तुमने क्या-क्या ना सीखा बता दो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
मैं हूँ भूखी तेरे प्यार की ऐ तू सुन,
दूँगी तुझको मैं हर चीज तू मुझको चुन |
अपने सीने से एक पल लगा लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
मैं कहाँ से शुरू में कहाँ आ गई,
सर जमी से चली आसमां पा गई,
वह हँसी पल मेरा फिर लौटा दो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
तेरी कविता हूँ मैं, हूँ कलम तेरी,
मां तो बनके रहूँ हर जन्म में तेरी |
अपना एक दोस्त आप बना लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
हिन्दी दिवस पर कविता { 5.}
राष्ट्रभाषा की व्यथा,
दु:ख भरी इसकी गथा |
क्षेत्रीयता से ग्रस्त है,
राजनीति से त्रस्त है |
हिन्दी का होता अपमान,
घटता है भारत का मान |
हिन्दी दिवस पर्व है,
इस पर हमें गर्व है |
सम्मानित हो राष्ट्रभाषा,
सबकी यही अभिलाषा |
सदा मने हिन्दी दिवस,
शपथ लें मने पूरे बरस |
स्वार्थ को छोड़ना होगा,
हिन्दी से नाता जोड़ना होगा |
हिन्दी का करे कोई अपमान,
कड़ी सजा का हो प्रावधान |
हम सबकी यह पुकार,
सजग हो हिन्दी के लिए सरकार |
हिन्दी दिवस पर कविता { 6.}
हम सबकी प्यारी,
लगती सबसे न्यारी |
कश्मीर से कन्याकुमारी,
राष्ट्रभाषा हमारी |
साहित्य की फुलवारी,
सरल-सुबोध पर है भारी |
अंग्रेजी से जंग जारी,
सम्मान की है अधिकारी |
जन-जन की हो दुलारी,
हिन्दी ही पहचान हमारी |
हिन्दी दिवस पर कविता { 7.}
संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी,
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी,
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी,
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी,
पढ़ने व पढ़ाने में सहज़ है सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी,
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी,
वागेश्वरी के माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी,
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपने पन से लुभाती है ये हिन्दी,
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।
(मृणालिनी घुले)
हिन्दी दिवस पर कविता { 8.}
हिन्दी इस देश का गौरव है, हिन्दी भविष्य की आशा है,
हिन्दी हर दिल की धड़कन है, हिन्दी जनता की भाषा है,
इसको कबीर ने अपनाया, मीराबाई ने मान दिया,
आज़ादी के दीवानों ने इस हिन्दी को सम्मान दिया,
जन – जन ने अपनी वाणी से हिन्दी का रूप तराशा है,
हिन्दी हर क्षेत्र में आगे है, इसको अपनाकर नाम करें,
हम देशभक्त कहलाएंगे, जब हिन्दी में सब काम करें,
हिन्दी चरित्र है भारत का, नैतिकता की परिभाषा है,
हिन्दी हम सबकी ख़ुशहाली है,
हिन्दी विकास की रेखा है,
हिन्दी में ही इस धरती ने हर ख़्वाब सुनहरा देखा है,
हिन्दी हम सबका स्वाभिमान, यह जनता की अभिलाषा है।
(देवमणि पांडेय)
हिन्दी दिवस पर कविता { 9.}
हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दुस्तान की जाई हूँ……
सबसे सुन्दर भाषा हिन्दी,
ज्यों दुल्हन के माथे बिन्दी,
सूर, जायसी, तुलसी कवियों की,
सरित-लेखनी से बही हिन्दी,
हिन्दी से पहचान हमारी,
बढ़ती इससे शान हमारी,
माँ की कोख से जाना जिसको,
माँ,बहना, सखी-सहेली हिन्दी,
निज भाषा पर गर्व जो करते,
छू लेते आसमान न डरते,
शत-शत प्रणाम सब उनको करते,
स्वाभिमान..अभिमान है हिन्दी…
हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दुस्तान की जाई हूँ…
(सुधा गोयल)
हिन्दी दिवस पर कविता { 10.}
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करो किन कोय।।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।।
सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।।
हिन्दी दिवस पर कविता { 11.}
भारत की गौरव-गरिमा का, गान बने हिंदी भाषा,
अंतरराष्ट्रीय मान और, सम्मान बने हिंदी भाषा।
स्वाभिमान-सद्भाव जगाती,संस्कृति की परिभाषा हिंदी,
बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
गाँधीजी का सपना ही था, ऐसा हिंदुस्तान बने,
जाति-धर्म से ऊपर हिंदी, भारत की पहचान बने।
सर्वमान्य भाषा बनकर हो, पूरित जन की आशा हिंदी।
बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
दुनिया भर की भाषाओं का, हिंदी में अनुवाद करें,
हम सब मिलकर विश्वमंच पर, हिंदी में संवाद करें।
निजभाषा-साहित्य-सृजन का, भाव जगाए भाषा हिंदी।
बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
अन्य सभी चर्चित भाषाओं, सा ही प्यार-दुलार मिले,
विश्वपटल पर हिंदी को भी, न्यायोचित अधिकार मिले।
पूरे हों संकल्प सभी के,जन-गण-मन-अभिलाषा हिंदी।
बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
हिंदी का सारी भाषाओं, से, रिश्ता है, नाता है,
भारतवंशी कहीं रहे, पर, हिंदी में इठलाता है।
समता-स्नेह-समन्वय का, संदेश बने जनभाषा हिंदी।
बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।
हिंदुस्तान बिना हिंदी के, अर्थहीन है, रीता है,
देश हमारा हिंदी में, सांसें ले-लेकर जीता है।
है स्वर्णिम भविष्य की सुंदर, मोहक-मधुर दिलाशा हिंदी।
बने विश्व की भाषा हिंदी, हम सब की अभिलाषा हिंदी।।
हम रहे या ना रहे लेकिन में देश नही मिटने दूंगा।